शिक्षा का उद्देश्य है अच्छा इंसान बनाना: राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर,राज्यपाल
संजीव कुमार, संवाददाता पटना ( बिहार ) :- इस सम्मेलन में देश- दुनिया के कई प्रतिनिधि आये हैं। यह एक बेहतर अवसर है एक- दूसरे और स्वयं को समझने का, जिससे सभी को यह पता चल सके कि शिक्षा कि बेहतरी के लिए और अच्छा कैसे हो। यह एक साबित तथ्य है कि भारत विश्व का मुख्य शिक्षा केंद्र था। भारत की शैक्षिक संस्कृति कैसी रही है. कहाँ से हम कहाँ जाना चाहते थे। इसपर विमर्श कि आवश्यकता है। इस सम्मलेन के कुछ दिनों पूर्व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। सम्मलेन को लेकर उसी थीम के तहत यहाँ एक विचार विमर्श की जा रही है कि शोध में महिलाओं कि भागीदारी- भूमिका कैसे बढे. मुझे आशा है कि जो प्रतिभागी इस सम्मलेन में हिस्सा ले रहे हैं वो इस दिशा में कोई सकारात्मक समाधान जरुर निकालेंगे, जिससे नयी चुनौतियों से निबटा जा सके।

उक्त बातें बिहार के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने सोमवार को कहीं। वे डा गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के दो दिवसीय द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बहुआयामी अनुसंधान में महिलाओं की भूमिका विषयक परिचर्चा पर देव मंगल सभागार में अपने विचार रख रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में कई बार हम लोगों को बताया जाता है कि हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था व्यवस्थित नहीं थी। पता नहीं यह विचार कहाँ से आई। दुनिया का पहला विश्वविद्यालय नालंदा में था जो बिहार में ही है। वहां कई शिक्षिकाएं महिलाएं थीं। इसपर हम सबों को गर्व है। हम लोगों के पास विक्रमशिला, तक्षशिला विवि भी थे। फिर भी हम पर अंगुली उठाये जा रहे हैं कि हम महिलाओं की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं रहे। दरअसल विदेशी आक्रान्ता हमारी शिक्षा व्यवस्था को ही ध्वस्त करना चाहते थे। इस दिशा में हम सब को विचार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने वर्ष 1835- 46 के बीच एक सर्वेक्षण किया था, जिसमे पता चला कि संयुक्त बिहार- बंगाल का साक्षरता दर लगभग 90 % था. वहीँ 1947 में जब अंग्रेज यहाँ से गए तब इस क्षेत्र का साक्षरता दर 20 प्रतिशत से कम हो गया। साक्षरता दर में इस गिरावट के बावजूद इस क्षेत्र में महिलाओं में साक्षरता दर 50 % से अधिक था। अब इसके लिए कौन जिम्मेदार रहा, लेकिन उलटे हम पर ही आरोप लगता है कि महिलाओं को हम शिक्षा नहीं दे रहे हैं। महिला शिक्षा के लिए हम प्रगतिशील रहे हैं। यह भी सत्य है की हाल में महिला साक्षरता में कमी आई है, लेकिन इसके लिए हम ही जिम्मेवार हैं और बेहतरी के लिए हमें ही प्रयास करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य अच्छे लोग बनाना है अन्यथा शिक्षा का कोई मतलब नहीं रहेगा। इस दिशा में विचार- विमर्श करने की जरुरत है। प्रधानमन्त्री हमारी तरफ देख रहे हैं. वर्ष 2047 तक हम विकसित राष्ट्र होंगे। लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमारा क्या योगदान हो सकता है इस पर भी एक विमर्श की आवश्यकता है। सम्मेलन की शुरुआत राष्ट्रगान के साथ हुई। राष्ट्रगान के उपरान्त विवि के कुलाधिपति डा गोपाल नारायण सिंह ने राज्यपाल का पुष्प- गुच्छ और अंगवस्त्र भेंटकर उनका स्वागत किया।
सम्मेलन के दौरान विवि के कुलपति प्रो. एमके सिंह के स्वागत भाषण के पहले विवि अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डीपी सिंह ने अपने विचार रखे। इसके बाद वरिष्ठ चिकित्सक डा अजय कुमार, तुर्की के ब्रोनोवा स्थित इजीइ विवि की डा एल्मास इंची एर्किन, विवि के प्रबंध निदेशक विक्रम नारायण सिंह, सम्मेलन कि अध्यक्ष मोनिका सिंह, विवि के सचिव गोविन्द नारायण सिंह, प्रो. एमके सिंह, डा जगदीश सिंह, संगीता सिंह आदि ने भी अपने- अपने विचार रखे। मंच संचालन प्राचार्या डा के लता और फैकल्टी डा ज्योति ने संयुक्त रूप से किया।
युग परिवर्तनकारी है युवाओं की दो- तिहाई आबादी: उपमुख्यमंत्री
सम्मेलन को संबोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि जिस भारत भूमि पर हम जन्म लिए हैं वह विश्व का पहला राष्ट्र है जिसको हम भारत माता के नाम से पुकारते हैं। यही स्पष्ट करता है कि इस धरती पर जन्म लेने वाले की सोच क्या है। गुलामी की मानसिकता में हम अपनी शक्ति, भक्ति और मुक्ति के मार्ग को भूल गए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का अभ्युदय जिस विश्व गुरु के रूप में हुआ था वह उससे भटक गया। लेकिन आज हम 21वीं सदी 24 वर्ष के यौवन में खड़े हैं और इस युग का वाहक संयोग नहीं हो सकता। यह दो- तिहाई युवाओं की आबादी युग परिवर्तन करने वालों का है जिसका नेतृत्व देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अतीत की जानकारी जरुरी है। अतीत के ही आधार पर भविष्य को गढ़ना है। महिला सशक्तिकरण के लिए जो वातावरण प्रधानमन्त्री ने बनाया है उसका नाम है नारी वंदन। इसी आधार पर आगे बढ़ना है जिससे इस धरती से पूरे विश्व का मार्गदर्शन हो।

नारी शक्ति के बिना संभव नहीं संसार का संचालन: डा गोपाल ना. सिंह
विवि के कुलाधिपति और पूर्व सांसद गोपाल नारायण सिंह ने कहा कि जबसे राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर बिहार में राज्यपाल बनकर आये वो विवि और शिक्षकों की सोच को लेकर संवेदनशील रहे। बिहार की जो दयनीय स्थिति शिक्षा के क्षेत्र में है उसमें सुधार करने के उद्देश्य से इस विवि की स्थापना की। भगवान ने प्रेरणा दी, अच्छे- अच्छे लोगों से सम्बन्ध बना और मां- पिता के आशीर्वाद से यह संस्थान शुरू हुआ।
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा योगदान राज्यपाल का रहा जिन्होनें शिक्षकों को प्रेरित किया। शिक्षकों का छात्र- छात्राओं के प्रति जिम्मेदारी और शिक्षक के समर्पण के बिना विद्यार्थियों का भला नहीं हो सकता। इतिहास पर अगुर करें तो पायेंगे कि विश्वमित्र ने राम और चाणक्य ने चंदगुप्त को तैयार किया। आज एक महान पुरुष का फिर जन्म हुआ है जो देश को अपनी पुरानी परंपरा, शिक्षा पद्वति को लाने कि कोशिश करता है। उसका नाम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। जाहिर है भारत को किसी भगवान ने नहीं बल्कि गुरुओं ने बनाया है।
उन्होंने कहा कि हम महिलाओं की सहभागिता के बारे में बात कर रहे हैं। साल में सिर्फ एक बार स्त्रियों का नमन करें तो उनकी स्थितियों में बदलाव नहीं होगा। हमारे भारतवर्ष की संस्कृति में सिर्फ स्त्रियों की पूजा- अर्चना की जाती है। इस देश की रचना स्त्रियों ने ही किया है। हमें समझना होगा कि नारी शक्ति के बिना बेहतर समाज निर्माण और संसार के संचालन की कल्पना नहीं की जा सकती। महिलाओं के प्रति जो हमारा सम्मान, झुकाव है इसको आप सभी अपने साथ ले जाएँ।